Thursday, April 3, 2008

स्त्री और नदी के दो किनारे

कल शाम थोड़ा खाली वक़्त था तो टी वी के चैनल सर्फ करने लगा, एक चैनल पर आकर हाथ खुदबखुद रुक गये ,शायद आँखों ने कुछ देखा था ,कानों ने कुछ सुन लिया था और दिमाग ने एक सवाल पैदा किया ।वह एक फिल्म थी -ऐतराज़ । मुख्य किरदार थे -अक्षय कुमार ,करीना कपूर ,प्रियंका चोपड़ा ,अन्नू कपूर और परेश रावल । जिस सीन को देख कर माथा ठनका -वह कोर्ट रूम का सीन था । अक्षय कुमार ने प्रियंका चोपड़ा पर् यौन उत्पीड़्न का केस ठोका था, उधर से प्रियंका चोपड़ा ने अक्षय कुमार पर रेप का केस ठोका था ।अन्नू कपूर अक्षय कुमार की पैरवी कर रहे थे और परेश रावल प्रियंका चोपड़ा की ।अन्नू कपूर केस की शुरुआत करते हुए कहते हैं --
नारी उस नदी के समान है जो अपने दो किनारो की मर्यादा में रहे तो खुशहाली लाती है ,और अगर किनारों को तोड कर बाहर आ जाए तो बदहाली और बरबादी लाती है ।
तो अचानक चोखेर बाली ब्लॉग की याद आ गयी कि उसमें जो स्त्रियाँ छप रही हैं वे दर असल किनारों को ही तोड़ कर बाहर उन्मुक्त बहना चाहती हैं , शायद यही पतनशीलता वाली सभी पोस्टॉ का भी आशय है , और शायद इसी लिए हम पुरुष ब्लॉगरों को उन्हें एक्सेप्ट करने में कठिनाई हो रही है ।
माथा मेरा यह सोच कर ठनका कि मर्यादा या दायरा या चौखट जैसे शब्द या सीमा कह लीजिये ;स्त्री के साथ ही क्यो जोड़े जाते हैं ?? जब भी कोई स्त्री इनसे बाहर निकलती है तो हमें क्यो अटपटा लगता है ?अब कल ही की बात है , मै ऑफिस पहुँचा तो मेरी हम उम्र कलीग ने मेरी पीठ थपथपा कर कोई बात कही ।मैं तब से सोच रहा हूँ कि यही बात मुझे क्यों याद रह गयी । इस व्यवहार में ऐसा क्या था । यदि कोई पुरुष कलीग ऐसा करता तो यह व्यवहार एक सामान्य लगने वाला होता ,जिसमें याद रखने या मन में अटक जाने जैसा कुछ नही मिलता ।लेकिन महिला साथी का यह व्यवहार क्यों मन में अटक गया ?
मुझे लगता है इसका मूल कारण हमारी सोशलाइज़ेशन के भीतर छिपा है । बचपन से ही हमें लड़के और लड़की होने का फर्क बताया जाता है,अपेक्षित व्यवहार समझाये जाते हैं और साथ ही अनपेक्षित व्यवहारों के सामाजिक निहितार्थ भी समझाए जाते हैं । बचपन में जिन्हें अच्छा लडका-अच्छी लड़की या गन्दा लड़का -गन्दी लड़की सम्बोधनो से समझते हैं । लड़के के लिए अच्छा होना और लड़की के लिये अच्छा होना एक से नही होते । दोनो के लिए अच्छे का मायना अलग है और गंदे का भी ।
अगर हम इन बातों के लिए जागरूक होकर अपनी आने वाली जनरेशन के पालन पोषण में बदलाव ला सकें तो बहुत बड़ी बात होगी ।
अन्नू कपूर ने जो कहा ,ऐसे वाक्यों का चलन होना भी घातक है औरत की आइडेंटिटी के लिए और ऐसे वाक्य इसी सोशलाइज़ेशन के तहत मुख से निकलते हैं जो हमें अब तक मिली है ।

5 comments:

KAMLABHANDARI said...

aaj mujhe dil se lag raha hai ki waaki ek purush aurat shabd ka sahi arth samaj gaya hai . aap jaishe kuch log aur ho jaye to ye dharti swarg ban jaaye.me bhi ek blog likhne ki kosis kar rahi hu jarur dekihyega

KAMLABHANDARI said...

agar aap kewal shabd me hi nahi balki dil se aurat ki kadar karte hai to aapke jeevan ko dukh kabhi chu bhi nahi sakta.kyuki ek aurat hi to hai jo dukho ko apne aanchal me chipa leti hai.
my best wishes is always with u

KAMLABHANDARI said...

agar aap kewal shabd me hi nahi balki dil se aurat ki kadar karte hai to aapke jeevan ko dukh kabhi chu bhi nahi sakta.kyuki ek aurat hi to hai jo dukho ko apne aanchal me chipa leti hai.
my best wishes is always with u

Anonymous said...

chokher bali ko promote karne kae naye tarikae per sadhuvaad
vineet ka blog dekha vahaan aap ka promotion ho rahaa haen

सुजाता said...

जी घोस्ट बस्टर जी,
खुल के बोल की यह पोस्ट वाकई प्रोमोट करने लायक है । मुझे मालूम नही था कि यह ब्लॉग ब्लॉगवाणी पर मौजूद है वर्ना लिंक देने की ज़रूरत नही थी । विनीत को अक्सर ऐसे लिंक भेजती हूँ , आपको कोई दिक्कत है क्या ? अगर इतने भर से चोखेर बाली ब्लॉग प्रोमोट होता है तब तो आप भी खुद को कर सकते हैं । अपनी पोस्ट बताइये मै अच्छी लगी तो उसका लिंक जहाँ जाऊंगी वहाँ चिपका आउंगी ।

जलिए मत , बल्कि आपको तो खुश होना चाहिये कि एक अच्छी बात को प्रमोट किया जा रहा है और आपको भी चोखेर बाली को प्रोमोट करना चाहिये घोस्ट बस्टर जी ।